Thursday, April 18, 2019

बचपन के वो पर्दे



उन पर्दों को देख के वो बचपन याद आता है,


जब घर के उन कोनों में ये हवा से यूँ लहराते होते थे।

सुरक्षा और आश्रय के ये प्रतीक, 
जब घर में दौड़ते दौड़ते हम इनसे जान बूझ के टकराते थे।
अपनी लंबाई से हम इन्हें कभी नापा करते थे,
अपने चेहरे, माथे से और वेग से हम इन पर्दों से भी कभी लड़ाई करते थे।
कभी इन्हें अपना जिगरी दोस्त मान के दिल से गले लगाया करते थे,
और कभी कट्टर दुश्मन मान के मुक्के इनपे बरसाया करते थे।
पिताजी की डांट की गर्जन से जब पूरा घर थरथराता था,
हम तो बस इन्ही दीवार से लटके कुछ फ़ीट के कपड़ो को ही ढाल बना के खुद को सुरक्षित महसूस कराना जाना करते थे।
चाहे खेल हो आइस पाइस का, या फिर चंचलता में गोल गोल घूमने का,
हम तो बस इन्ही पर्दों के सहारे खुश होना जाना करते थे।
आज भी जब इनको हम हवा से यूँ लहराते देखा करते हैं,
तो कहीं ना कहीं वो मासूम सी भोली सुरक्षा और क्रीडा को याद करते खुदको पाया करते हैं।

Entanglement



Strangulated in this linear entanglement
Getting content with this fulfilling resentment
Overwhelmed with this subtle numbness
Embracing this pleasant hurt with greatest tenderness
These entanglements speak silently of my past struggles
Under the naked sky,
Chilling wind on my face, ruffling these strands of black hair
I pass these twisted and accessible hurdles
Throw what you may, dirt, muck or filth
With effort, patience and love
Walking the path of truth
I will transform every dirt into gold so pure,
Every muck into a majestic lotus
and every filth into a bright prospect
My entanglements are my opportunities
Making me grow, making me strong,
Bringing-out all vigor and buoyant properties
I will not let anyone take away my entanglements
and promise will make use of them to the greatest of my strengths.

Sunday, April 14, 2019

सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली


"सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली"

अरे तो इसमें दिक्कत क्या है भाई? बिल्ली हज को ही तो चली है, मैखाने की तरफ तो नहीं रूख किया है। कुछ लोगों की प्रवित्ति ही ऐसी होती है, निराशावाद से भरी हुई। इन लोगों की अगर आप सुनने लगेंगे तो एक समय आपको ऐसा लगेगा की आत्म सुधार बस इक मित्थ्या मात्र है, और कुछ नहीं। इनकी मानें तो आप अपने भूत की ऐसी संतान हैं जो नकारात्मकता से भरी हुई है। ऐसी संतान जिसका भूत भविष्य और वर्तमान, सब गर्त मैं पड़ा हुआ है। और गर्त भी तो ऐसा गर्त जिसमें से; इन जैसे लोगों के अनुसार; निकलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। अगर आप इन लोगों की बातों को जयादा महत्त्व देंगे और गम्बीरता से लेंगे तो आप वो बिल्ली बन के रह जायेंगे जो अगर आत्म सुधार के तरफ कोई भी कदम उठाये तो कदम उठाने से पहले ये बोल के टोक दिया जाये "हुंह! सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली"। और फिर आप अपने आप को उस अनंत, कभी समाप्त न होने वाली प्रक्रिया में फंसे हुए पाएंगे। जिसमे आप इन निराशावादी लोगों को ये विश्वास दिलाने में लग जाते हैं की, आत्म सुधार, बेहतर भविष्य, एक ठोस संभावना है। ये लोग नहीं मानेंगे। आप और प्रयास करेंगे, ये लोग फिर आपको यह कह के झुठला देंगे की "सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली"।

आप पूछेंगे की हम किसी भी राह चलते निराशावादी मनुष्य को क्यों विश्वास दिलाने में अपनी ऊर्जा व्यर्थ करेंगे। पर ऐसे कुछ निराशावादी लोग आपके बहुत करीबी भी तो हो सकते हैं।  पर क्यूंकि ये लोग आपके इतने करीबी होते हैं, तो आप इन लोगों को विश्वास दिलाने में अपनी जरूरी ऊर्जा व्यर्थ कर देते हैं। इस ऊर्जा, जिसका आप आत्म सुधार, एक बेहतर भविष्य, जैसी संभावनाओं को हकीकत बनाने में लगा सकते थे, उसे आप इन कभी न समझने वाले लोगों को समझाने में नष्ट करते अपने आपको पाते हैं। क्या किया जाये की आप जयादा समय इन लोगों को अपनी सकारात्मकता सिद्ध करने में न व्यर्थ करें, और जल्दी होश में आ के इस ऊर्जा का उपयोग अपनी ज़िन्दगी को एक सकारात्मक आकार देने में लगाएं।

ऐसा करने के लिए दो अंश हैं:
१) अभिज्ञान
२) उपेक्षा

अभिज्ञान से तात्पर्य है की पहले पता तो लगाइये की ये व्यक्ति जो आपका बहुत करीबी है, वो एक नकारात्मक विचारशैली का धारक है। और अपने साथ वो आपको भी पीछे की तरफ खींच रहा है। जिस पल आपको इस बात का ज्ञांत हो जाता है, आप इस मनुष्य की उपेक्षा प्रारम्भ कर देंगे। जैसे ही आप इस प्राणी की उपेक्षा करना शुरू कर देते हैं, आप पाएंगे की आपको इसकी किसी भी बात का अब कोई असर नहीं पड़ रहा है। अब आपके लिए इस मनुष्य को कुछ साबित करना अनिवार्य नहीं है। आपकी इस व्यक्ति की तरफ कोई जवाबदेही नहीं है। तब जा के कहीं आप अपनी महत्वपूर्ण ऊर्जा का सदुपयोग करना प्रारम्भ करेंगे और अपने जीवन को एक नयी दिशा देने का काम प्रारम्भ करेंगे।


Wednesday, January 30, 2019

Journey...


I came thus far not because someone told me to,
This was my choice, my decision for once being true
My days of lying and fooling myself had to get over,
I got some pedals and a saddle, this was my time to get sober
My learning have always been sluggish and and kind of slow
But I have arrived and reached, when time has called upon me to show
For me this journey has just started to unfold,
There is no stopping back, nothing that can hold
I will spread these wings and goto places untouched,
Explore, seek and discover the joy within, which is ready to be unearthed
This is the day I promise myself, that I am never going to be unhappy again,
But be that bundle of sunshine and rainbows, which no walls and darkness can contain...

ज्वलन


तप से डरे है क्यों राही,
इस नदिया है तूफ़ान माही|
जो तू चला त्यागने अपनी भ्रान्ति,
ये पथ नहीं आसान रे पंथी|
जूझ आज अपनी उलझनों से,
कल के ख़यालों पे क्यों सोये रे|
इन घनघोर अंधेरी रातों में, तू जला के अपने पराक्रम की ज्वाला,
ज्ञान, विवेक और पुरुषार्थ से आज फिरसे कर दे तू एक नवीन उजाला।
जले हुए को क्या डराएगी ये आग की लपटें,
जी लिया बस बहुत यूँ डरते डरते।
झोंक देना इस जीवन को तुम तप, अग्नि, ज्वाला, अनल में,
यूँ हो कि या तो बस राख रह जाये, या तो कुंदन कमल से।
-beelikemakkhi