तप से डरे है क्यों राही,
इस नदिया है तूफ़ान माही|
जो तू चला त्यागने अपनी भ्रान्ति,
ये पथ नहीं आसान रे पंथी|
जूझ आज अपनी उलझनों से,
कल के ख़यालों पे क्यों सोये रे|
इन घनघोर अंधेरी रातों में, तू जला के अपने पराक्रम की ज्वाला,
ज्ञान, विवेक और पुरुषार्थ से आज फिरसे कर दे तू एक नवीन उजाला।
जले हुए को क्या डराएगी ये आग की लपटें,
जी लिया बस बहुत यूँ डरते डरते।
झोंक देना इस जीवन को तुम तप, अग्नि, ज्वाला, अनल में,
यूँ हो कि या तो बस राख रह जाये, या तो कुंदन कमल से।
जो तू चला त्यागने अपनी भ्रान्ति,
ये पथ नहीं आसान रे पंथी|
जूझ आज अपनी उलझनों से,
कल के ख़यालों पे क्यों सोये रे|
इन घनघोर अंधेरी रातों में, तू जला के अपने पराक्रम की ज्वाला,
ज्ञान, विवेक और पुरुषार्थ से आज फिरसे कर दे तू एक नवीन उजाला।
जले हुए को क्या डराएगी ये आग की लपटें,
जी लिया बस बहुत यूँ डरते डरते।
झोंक देना इस जीवन को तुम तप, अग्नि, ज्वाला, अनल में,
यूँ हो कि या तो बस राख रह जाये, या तो कुंदन कमल से।
-beelikemakkhi

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